बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- रजोनिवृत्ति क्या है ? इसका स्वास्थ्य पर प्रभाव एवं बीमारियों के संबंध में व्याख्या कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. रजोनिवृत्ति का अर्थ
2. गर्भ आभास
3. रजोनिवृत्ति के लक्षण ।
उत्तर -
स्त्री के जीवन में उसके मासिक धर्म का बिल्कुल बंद हो जाना एक प्रमुख शारीरिक परिवर्तन की दशा मानी जाती है। इस स्थिति के दौरान स्त्री के शरीर में लगातार परिवर्तन होते हैं। प्रत्येक स्त्री इस परिवर्तन का अनुभव नये व व्यक्तिगत तरीके से करती है। कुछ स्त्रियों का मानना है कि यह दशा उनके जीवन में एक नये अनुभव व दृष्टिकोण के साथ प्रारम्भ हुई है।
यह सर्वविदित है कि मासिक धर्म का प्रारम्भ किसी भी स्त्री को उसके जीवन में विशेष अनुभूति और परिपक्वता का बोध कराता है । उसी प्रकार रजोनिवृत्ति भी एक विशेष अनुभूति स्त्री को प्रदान करती है। यह अनुभूति स्त्रियों को शारीरिक, मानसिक, आत्मिक व दैवीय आकांक्षाओं व अपेक्षाओं की पूर्ति का आभास कराती है। कई स्त्रियाँ रजोनिवृत्ति को मुक्तिबोध जैसे दृष्टिकोण से देखती हैं क्योंकि उन्हें गर्भधारण तथा मासिक धर्म के कष्ट से स्वतन्त्र होने का अहसास होता है। इस समय कई स्त्रियाँ जीवन में नई आकांक्षाओं व अपेक्षाओं को स्वतंत्र होकर पूरा करने का प्रयास भी करती हैं।
रजोनिवृत्ति स्त्रियों में उद्वेग की भावना को कई बार जन्म देती है। इसका प्रमुख कारण उन्हें अपने स्त्रीत्व, आकर्षण व प्रजनन की क्षमता का क्षय होने का भय बताया गया है। इस समय स्त्री एकाकीपन, असहाय तथा निरर्थक होने की भावना से भयभीत देखी जाती है। प्रजनन क्षमता का क्षय या लोप होना स्त्री अपने नारीत्व, यौवन तथा आकर्षण के समाप्त होने से जोड़कर देखती है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि रजोनिवृत्ति विभिन्न स्त्रियों में विभिन्न मनःस्थिति उत्पन्न करती है जिसके अन्तर्गत उन्हें चिन्ता, डर व निरर्थकता का बोध होता है तथा साथ ही कुछ स्त्रियाँ स्वतंत्रता, मुक्ति तथा निश्चिन्तता का बोध करती हैं।
उपरोक्त तथ्यों से स्त्रियों को कदापि यह नहीं समझना चाहिए कि प्रत्येक स्त्री के लिये रजोनिवृत्ति एक अत्यधिक चिंतात्मक मनःस्थिति रजोनिवृत्ति से पूर्व, रजोनिवृत्ति के दौरान या रजोनिवृत्ति के बाद हो सकती है। परिपक्व स्त्रियाँ इस घटना को एक आवश्यक परिवर्तन के रूप में स्वीकार करे बिना किसी बाधा के सुचारू व नियमित जीवन व्यतीत करती हैं तथा अपने जीवन का एक तिहाई भाग रजोनिवृत्ति के उपरान्त बिना कठिनाई के स्वस्थ एवं आनन्द से व्यतीत करती हैं।
नियोजित मातृत्व रजोनिवृत्ति से सम्बन्धित पूर्ण ज्ञान तथा आने वाली सम्भावित समस्याओं से पूर्ण परिचय, जीवन के प्रति पूर्व नियोजित दृष्टिकोण किसी भी स्त्री के इस दशा में सर्वाधिक सुख, परिपूर्णता का अहसास, सृजन की क्षमता जैसी अनुभूति प्रदान करने का होता है।
(Meaning of Menopause)
रजोनिवृत्ति किसी भी स्त्री के जीवन के मध्य भाग में होने वाली वह घटना या समय है जब उसे अन्तिम मासिक धर्म हुआ हो । रजोनिवृत्ति के अन्तर्गत अण्डाशय द्वारा डिम्ब का निर्माण धीरे-धीरे बन्द होता जाता है। कुछ स्त्रियों में यह क्रिया अचानक या एकाएक भी देखी जाती है।
पूर्व रजोनिवृत्ति धीरे-धीरे होने वाला एक शारीरिक परिवर्तन है जिसका अन्तिम सोपान रजोनिवृत्ति है। इस समय स्त्री के शरीर में हारमोन्स (Hormones), स्त्री की मनोदशा आदि विशेष रूप से प्रभावित होते हैं।
विभिन्न स्त्रियों में यह परिवर्तन रजोनिवृत्ति के प्रारम्भ या अन्त के समय होने वाले परिवर्तन जैसा रहता है जो कई महीनों व कई सालों तक देखा जा सकता है। स्त्री में प्रजनन की क्षमता से प्रजनन की क्षमता के अभाव का यह समय 'Climatic Change' कहलाता है।
प्रमुखतः इस समय 'अण्डाशय' (Ovaries) द्वारा इस्ट्रोजन (Estrogen) बनाने की क्षमता में कमी होना पाया जाता है। हारमोन स्तर में उतार-चढ़ाव इस समय ठीक उसी प्रकार से देखा जाता हैं जैसा मासिक-धर्म की शुरूआत में किशोरियों में होता है।
रजोनिवृत्ति के दौरान स्त्रियों की मनोदशा व अनुभूति उनके मासिक धर्म आरम्भ होने की अवस्था से अधिक तीव्र होती है जो स्त्री विशेष की मन:स्थिति, भावना, आयु तथा सामाजिक विचारों के प्रति उसके दृष्टिकोण पर निर्भर करती है। 'प्रेरित रजोनिवृत्ति' (Induced Menopause) स्त्रियों द्वारा उनका अण्डाशय निकाल दिये जाने या किसी कारण अण्डाशय के क्षतिग्रस्त होने के कारण होता है जिसका कारण परिवार नियोजन हेतु अपनाये गये तरीके, कीमोथेरोपी (Chemotheropy) या रेडियोधर्मी चिकित्सा (Radiation Therapy) के तरीके हो सकते हैं। अतः उपरोक्त स्थिति में स्त्रियों में रजोनिवृत्ति किसी पूर्व लक्षण के बिना एकाएक हो जाती है।
(Characteristics of Menopause)
रजोनिवृत्ति के बाद का समय 'Post Menopause' कहलाता है। स्त्रियाँ जैसे-जैसे रजोनिवृत्ति की ओर अग्रसर होती हैं उनका मासिक धर्म असामान्य होने लगता है जो समय से पूर्व या समयोपरान्त निम्न लक्षणों को प्रदर्शित करता है।
(i) जोड़ों में दर्द ।
(ii) गर्म अनुभूति ( Hot Flashes )
(iii) आंशिक रूप से स्मरण शक्ति का क्षय / ह्रास होना।
(iv) काम - इच्छाओं में परिवर्तन ।
(v) अत्यधिक पसीना आना।
(vi) सिरदर्द ।
(vii) बार-बार पेशाब लगना ।
(viii) जल्दी नींद खुलना।
(ix) योनि में शुष्कता ।
(x) मनोभाव / दशा में परिवर्तन ।
(xi) नींद न आना (अनिद्रा) ।
(xii) रात को पसीना आना ।
(xiii) मासिक धर्म शुरू होने के समय होने वाले अन्य लक्षण हैं।
इन लक्षणों में कोई एक, सभी या कोई भी लक्षण स्त्रियों में दिखाई दे यह जरूरी नहीं है। किसी विशेष स्त्री में कौन-से लक्षण पाये जायेंगे इसका पूर्वानुमान सम्भव नहीं है। कई स्त्रियों में ये लक्षण समस्यात्मक भी होते हैं, विशेषकर उन स्त्रियों में जिन्हें इन बातों का ज्ञान नहीं रहता है कि रजोनिवृत्ति से जुड़ी इस प्रकार की समस्यायें होती हैं।
स्त्रियों के व्यक्तिगत अनुभव व रजोनिवृत्ति के समय घटित पारिवारिक, सामाजिक परिस्थितियों का विशेष प्रभाव कई स्त्रियों में देखा जाता है। ऐसा परिवर्तन जो जीवन के उस सोपान पर स्त्रियों को देखना पड़ता है या उनका सामना करना पड़ता है, उसका सम्भावित प्रभाव रजोनिवृत्ति पर भी पड़ सकता है, ऐसे परिवर्तन निम्न प्रकार के हो सकते हैं-
(i) बच्चों का नौकरी या शादी के कारण परिवार से अलग होना ।
(ii) विवाह विच्छेद ।
(iii) सेवानिवृत्ति ।
(iv) बीमारी, उम्र, मृत्यु आदि से उत्पन्न भय।
(v) मित्रों, प्रियजनों आदि का वियोग ।
(vi) आर्थिक सुरक्षा |
(vii) वृद्ध माता-पिता के स्वास्थ्य सम्बन्धी अतिभार ।
(viii) स्वयं की स्वाधीनता, अक्षमता, एकाकीपन की चिन्ता ।
जीवन के इस सोपान में स्त्रियों को स्वयं की समस्याओं के साथ ही सन्तान की चिन्ता परेशान करती है। सास-ससुर तथा अपने माता-पिता भी इस समय अपनी देखभाल की आशा व समय की माँग करते हैं। अतः स्त्रियाँ रजोनिवृत्ति के पूर्व एवं पश्चात् कई पारिवारिक समस्याओं के कारण अत्यधिक उद्विग्न तथा परेशान रहती हैं। अक्सर इन परिस्थितियों में उन्हें डॉक्टरी सलाह व सहयोग की आवश्यकता पड़ती है। किसी भी समाज में 10-15 प्रतिशत स्त्रियों को रजोनिवृत्ति से जुड़ी समस्याओं या लक्षणों का सामना नहीं करना पड़ता वहीं 10 से 15 प्रतिशत स्त्रियों को इस समय अत्यधिक मानसिक व शारीरिक समस्याओं का सामना अल्प या दीर्घ काल तक करना पड़ता है।
अध्ययनों में देखा गया है कि सभी स्त्रियों को जीवन के इस काल में क्षय रोग, ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) जैसी बीमारी होने की आशंका रहती है।
(Age of Menopause)
रजोनिवृत्ति की निश्चित आयु स्त्रियों में कब हो सकती है, कहना सम्भव नहीं है हालांकि वैयक्तिक भिन्नताओं के अनुसार यह कहा जा सकता है कि स्त्रियों में यह आयु 35 वर्ष से 50 वर्ष तक देखी जाती है। खान-पान, जीवन का रहन-सहन, आनुवांशिक गुण व मादक द्रव्यों का प्रयोग करने वाली स्त्रियों में यह आयु भिन्न-भिन्न समयों पर होती है।
अतः यह कह सकते हैं कि भिन्न-भिन्न स्त्रियों में रजोनिवृत्ति की आयु भिन्न-भिन्न होती है। आयु की भिन्नता का सम्बन्ध नस्ल, जाति, धर्म, समाज, गर्भधारण, प्रसव, परिवार नियोजन के लिए अपनाई गई पद्धति, ऊँचाई या कद, शारीरिक बनावट, मासिक धर्म शुरू होने की उम्र, अन्तिम गर्भधारण के समय की उम्र आदि से कदापि नहीं होता है। सांख्यिकीय रिपोर्ट के अनुसार, रजोनिवृत्ति की औसत आयु भारतीय महिलाओं में 50 वर्ष बताई गई है। यदि प्राकृतिक या किसी कारणवश अण्डाशय को निकाल दिया गया है तब यह आयु 40 से पूर्व हो सकती है। इस प्रकार की रजोनिवृत्ति को अपरिपक्व रजोनिवृत्ति की संज्ञा दी जाती है।
चिकित्सा पद्धति द्वारा एक या दोनों अण्डाशयों को निकालने से उत्पन्न रजोनिवृत्ति से शरीर में इस्ट्रोजन (Estrogen) का स्तर एकाएक कम हो जाता है। अतः कई स्त्रियाँ मानसिक व शारीरिक तनाव से ग्रस्त हो जाती हैं। फलस्वरूप पूर्व में दिये गये लक्षण उनमें ज्यादा से ज्यादा प्रकट होते हैं। अतः स्वभाव में निराशा की भावना स्पष्ट दिखाई देती है।
अधिकतर स्त्रियों में यह घटनाक्रम प्राकृतिक रूप से एक अन्तराल तक धीरे-धीरे घटित होता है तथा उसी गति से हारमोन्स (Hormones) का स्तर भी कम होता जाता है। अतः उन स्त्रियों को कोई खास समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है।
स्त्रियाँ रजोनिवृत्ति को जीवन में घटने वाली एक प्राकृतिक व आवश्यक प्रक्रिया के रूप में देखें जो जीवन के एक निश्चित सोपान में सीमित अवधि के रूप में चलती है। यह कोई बीमारी नहीं क्योंकि इस समय उत्पन्न होने वाले सभी लक्षण अस्थायी होते हैं, जैसे-
(i) मनःस्थिति में परिवर्तन ।
(ii) गर्मी का आभास ।
(iii) हताशा की भावना ।
(iv) लैंगिक शुष्कता का भय ।
(v) यौन इच्छाओं में परिवर्तन या कमी होना ।
उपरोक्त लक्षण कुछ स्त्रियों में 2 से 3 वर्ष की अवधि तक देखे जाते हैं, जबकि कुछ स्त्रियों में दस से बारह वर्ष तक देखे जाते हैं।
रजोनिवृत्ति से पूर्व का समय स्त्रियों की प्रजनन क्षमता में कमी लाता है ये मानना गलत है। वास्तव में इस दौरान मासिक धर्म अनियमित होने के बावजूद गर्भधारण सम्भव है। फलस्वरूप स्त्रियों को परिवार नियोजन के तरीके अपनाने चाहिएँ ताकि अनिश्चित गर्भधारण से वे बच सकें। परिवार नियोजन के लिये अपनाई गई पद्धति के सम्बन्ध में डॉक्टर से परामर्श करना उचित होगा।
(Hot Flashes and Night Sweats)
गर्म आभास रजोनिवृत्ति के दौरान अधिकांश स्त्रियों द्वारा अनुभव किया जाने वाला एक प्रमुख लक्षण है। इस समय शरीर के ऊपरी भाग में एकाएक गर्मी का आभास होता है जिसकी अवधि 30 सेकंड से लेकर 5 मिनट तक हो सकती है। इसका कारण रक्त में हारमोन्स द्वारा उत्पन्न त्वरित परिवर्तन है। इसकी अनुभूति स्त्रियाँ अंगुलियों में झनझनाहट या हृदय गति के बढ़ जाने के रूप में करती हैं। गर्मी के आभास का क्रम पहले वक्ष स्थल से मुँह की ओर गर्मी बढ़ती है, साथ ही चेहरा लाल होने के साथ-साथ पसीना भी आने लगता है। वे स्त्रियाँ जो रजोनिवृत्ति से गुजर रहती हैं उनमें से 7 प्रतिशत को यह आभास होता है। 20 प्रतिशत स्त्रियों को दिन में एक बार से अधिक इस प्रकार के अनुभव से गुजरना पड़ता है एवं 10 प्रतिशत स्त्रियाँ रजोनिवृत्ति के पाँच साल बाद तक इस प्रकार के
अनुभव प्राप्त करती हैं। अधिकतर स्त्रियों में रजोनिवृत्ति के बाद इस प्रकार के अनुभव का उदाहरण नहीं पाया जाता है।
गर्म अहसास स्त्री के द्वारा रात में सोने के बाद जब भी होता है उसका पहला लक्षण पसीने का अत्यधिक बहना है। यहाँ तक कि उसके कपड़े, बिस्तर आदि भी गीले हो जाते हैं। इस घटना चक्र को चिकित्सा विज्ञान से रात्रिकालीन पसीना (Night Sweating) कहा है।
गर्म आभास से मुक्ति हेतु उपाय
चिकित्सक द्वारा किया गया हारमोन्स, चिकित्सा एवं दवाइयाँ ।
प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति का प्रयोग कर, जैसे- जड़ी-बूटी (आयुर्वेदिक उपाय ) भोजन व जीवन पद्धति पर नियन्त्रण करके, विटामिन E का प्रयोग आदि ।
नियमित व्यायाम, स्वच्छ एवं शीतल जल से स्नान करके तनाव से मुक्ति प्राप्त कर, ठंडे वातावरण में निवास करके।
चाय, कॉफी, मादक द्रव्य, गर्म पेय तथा मसालेदार भोजन पर नियन्त्रण कर इसे सीमित किया जा सकता है।
हल्का, पतला सूती वस्त्र जो गर्म आभास के होते ही बदला जा सकता है तथा जिसमें पसीना सोखने की शक्ति हो, आदि का प्रयोग आराम प्रदान करता है।
गर्म आभास के कारण परिस्थिति एवं समय के बारे में रिकॉर्ड रखकर बचाव के तरीकों को अपनाया जा सकता है।
उपरोक्त बातों को ध्यान में रखकर स्त्रियाँ गर्म आभास के अनुभव से स्वयं को कुछ हद तक सुरखित रख सकती हैं।
ऑस्टियोपोरोसिस
(Osteoporosis)
स्त्री के शरीर की हड्डियों का क्षय होना अर्थात् हड्डियों के घनत्व में कमी आ जाने को ऑस्टियोपोरोसिस कहते हैं। इसका एक प्रमुख कारण रजोनिवृत्ति के बाद शरीर में एस्ट्रोजन उत्पादन की कमी होना है। रजोनिवृत्ति के उपरान्त स्त्रियों में प्रतिवर्ष 2 से 5 प्रतिशत की दर से आने वाले पाँच वर्षों तक हड्डियों के घनत्व में कमी होना सम्भव है। इस प्रकार स्त्री की हड्डियाँ निरन्तर हास के कारण कमजोर व पतली होती जाती हैं जो जल्दी टूटने वाली हो जाती हैं। अधिक उम्र की स्त्रियों में ऑस्टियोपोरोसिस के कारण कूल्हे की हड्डी के टूटने का निरन्तर डर बना रहता है जो कभी-कभी जानलेवा भी हो सकता है।
हड्डी के क्षय होने की शुरूआत स्त्रियों में 30 वर्ष की उम्र के आस-पास आरम्भ हो जाती है। अतः सभी स्त्रियों को हड्डियों के घनत्व को बनाये रखने के उपाय करते रहना चाहिए व इस सम्बन्ध में सचेत रहना भी जरूरी है। अतः इस दिशा में उन्हें नियमित व्यायाम, दौड़ना, वजन उठाना तथा कैल्सियम युक्त भोजन, विटामिन डी से युक्त भोजन लेना सहायक होगा। भारतीय स्त्रियों के भोजन में आवश्यकतानुसार कैल्शियम नहीं होता है अतः उन्हें रजोनिवृत्ति से पूर्व 1000 mg . तथा बाद में 1200 mg. कैल्शियम भोजन ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए।
डॉक्टरों का कहना है कि कुछ ऐसी दवाइयाँ तथा चिकित्सा पद्धति हैं जो ऑस्टियोपोरोसिस को रोकने का काम करने में सहायक हैं। एस्ट्रोजोन चिकित्सा (Estrogen Therapy-ET) उनमें से एक विधि है। यह चिकित्सा प्रणाली सभी स्त्रियों के लिये उपयोगी हो जरूरी नहीं। निम्न स्त्रियों में ऑस्टियोपोरोसिस की होने की सम्भावना अन्य स्त्रियों की तुलना में ज्यादा होती हैं-
(i) गोरी तथा एशियाई स्त्रियों में।
(ii) हारमोन्स सम्बन्धी विकार से पीड़ित स्त्रियों में, जैसे-मधुमेह, हाइपर थॉयराइड रोग से पीड़ित ।
(iii) जिन्हें शीघ्र रजोनिवृत्ति हो गयी हो ।
(iv) जो धूम्रपान करती हों।
(v) जिनके परिवार में ऑस्टियोपोरोसिस का इतिहास है।
(vi) जिन्हें उचित व्यायाम करने का समय नहीं मिला हो।
(vii) जिनके भोजन में कैल्शियम व विटामिन डी की मात्रा कम हो ।
(viii) जो गलग्रन्थी सम्बन्धी दवाओं का प्रयोग करती हों।
(ix) जिनके भोजन में कैफीन, एल्कोहल तथा प्रोटीन की मात्रा अधिक हो ।
ऑस्टियोपोरोसिस का विकास किसी भी स्त्री में बिना किसी बाह्य लक्षणों के हो सकता है तथा शुरूआती दौर में इसका पता भी नहीं चलता है। धीरे-धीरे स्त्री को पीठ व तल पेट में दर्द का होना सम्भव है। इस कारण समय-समय पर हड्डियों के घनत्व की जाँच कराना आवश्यक है।
निम्न स्त्रियाँ हड्डी घनत्व जाँच अवश्य करवायें
(i) जिन्हें रजोनिवृत्ति से पूर्व या अन्य समय लम्बे अन्तराल से मासिक धर्म होता रहा हो ।
(ii) यदि स्त्री द्वारा किन्हीं कारणवश स्टीरॉयड (Steroid) दवाइयाँ ली जा रही हों।
(iii) यदि स्त्री की पराग ग्रंथी (Parathyroid Gland) अधिक क्रियाशील हो जो हड्डियों को क्षय करती है।
यौन सम्बन्धी मध्य जीवन के परिवर्तन
यौन सम्बन्धी आकांक्षायें अक्सर रजोनिवृत्ति के दौरान कम होती देखी गयी हैं पर रजोनिवृत्ति के पूर्ण होने पर वह साधारण सीमा पर वापस भी आ जाती हैं।
ऐसा भी देखा गया है कि कुछ स्त्रियों में रजोनिवृत्ति के उपरान्त यौन आकांक्षायें ( काम भावनाएँ) बढ़ जाती हैं। शायद ऐसा उनके गर्भवती न होने के ज्ञान से उत्पन्न मानसिक उन्मुक्तता के कारण होता है। दूसरी ओर करीब एक तिहाई स्त्रियाँ ऐसी भी होती हैं जिनमें काम भावनायें लुप्त पायी जाती हैं और इसका एक विशेष कारण योनि की शुष्कता तथा यौन कोशिकाओं के सिकुड़ने के कारण सम्भोग के समय उत्पन्न पीड़ा के कारण होता है।
रजोनिवृत्ति एक प्राकृतिक गर्भ निरोधक स्थिति है पर इसके शुरू होने के उपरान्त कुछ समय तक गर्भधारण की सम्भावना रहती है। इस कारण रजोनिवृत्ति प्रक्रिया को पूर्ण होने के एक वर्ष पश्चात् तक गर्भ नियन्त्रण हेतु अपनाये गये उपायों का प्रयोग करते रहना उचित है ताकि अवांछित गर्भधारण न हो। जो महिलायें गर्भ निरोध हेतु गोलियाँ लेती हैं उन्हें अपना हारमोन्स स्तर भी जाँच करवाकर ही गोलियाँ लेना बन्द करना चाहिए ताकि यह निश्चित हो जाये कि मानसिक धर्म रजोनिवृत्ति के कारण बन्द हुआ है न कि गोलियों के प्रभाव से ।
ध्यान देने योग्य बातें
1. रजोनिवृत्ति शारीरिक सम्बन्धों द्वारा फैलने वाली बीमारियों के विरुद्ध रक्षा कवच नहीं है। अतः स्त्री या पुरुष जिनके एकाधिक यौन साथी हों वे सदा ही कण्डोम की सुरक्षा लें ताकि शारीरिक सम्बन्धों से व्याधि न फैले।
2. रजोनिवृत्ति से उत्पन्न समस्याओं का एक विशेष हल सामयिक परामर्श है। जीवन के मध्य भाग में होने वाले उतार-चढ़ावों में परामर्श का महत्व तब और अधिक हो जाता है। हम देखते हैं कि सामाजिक परम्पराओं और विश्वासों के कारण हमारे समाज में पढ़ी-लिखी स्त्रियाँ भी मासिक धर्म से सम्बन्धित किसी भी समस्या के निराकरण हेतु उचित मार्गदर्शन नहीं लेती हैं। उचित जानकारी के अभाव में व्याप्त भ्रान्ति तथा भ्रम का निराकरण योग्य परामर्शदाता द्वारा किया जा सकता है।
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- प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विकास सम्प्रत्यय की व्याख्या कीजिए तथा इसके मुख्य नियमों को समझाइए।
- प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में अनुदैर्ध्य उपागम का वर्णन कीजिए तथा इसकी उपयोगिता व सीमायें बताइये।
- प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में प्रतिनिध्यात्मक उपागम का विस्तार से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में निरीक्षण विधि का विस्तार से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- व्यक्तित्व इतिहास विधि के गुण व सीमाओं को लिखिए।
- प्रश्न- मानव विकास में मनोविज्ञान की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास क्या है?
- प्रश्न- मानव विकास की विभिन्न अवस्थाएँ बताइये।
- प्रश्न- मानव विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन की व्यक्ति इतिहास विधि का वर्णन कीजिए
- प्रश्न- विकासात्मक अध्ययनों में वैयक्तिक अध्ययन विधि के महत्व पर प्रकाश डालिए?
- प्रश्न- चरित्र-लेखन विधि (Biographic method) पर प्रकाश डालिए ।
- प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में सीक्वेंशियल उपागम की व्याख्या कीजिए ।
- प्रश्न- प्रारम्भिक बाल्यावस्था के विकासात्मक संकृत्य पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- गर्भकालीन विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-सी है ? समझाइए ।
- प्रश्न- गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन-से है। विस्तार में समझाइए।
- प्रश्न- नवजात शिशु अथवा 'नियोनेट' की संवेदनशीलता का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते है ? क्रियात्मक विकास का महत्व बताइये ।
- प्रश्न- क्रियात्मक विकास की विशेषताओं पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- क्रियात्मक विकास का अर्थ एवं बालक के जीवन में इसका महत्व बताइये ।
- प्रश्न- संक्षेप में बताइये क्रियात्मक विकास का जीवन में क्या महत्व है ?
- प्रश्न- क्रियात्मक विकास को प्रभावित करने वाले तत्व कौन-कौन से है ?
- प्रश्न- क्रियात्मक विकास को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- प्रसवपूर्व देखभाल के क्या उद्देश्य हैं ?
- प्रश्न- प्रसवपूर्व विकास क्यों महत्वपूर्ण है ?
- प्रश्न- प्रसवपूर्व विकास को प्रभावित करने वाले कारक कौन से हैं ?
- प्रश्न- प्रसवपूर्व देखभाल की कमी का क्या कारण हो सकता है ?
- प्रश्न- प्रसवपूर्ण देखभाल बच्चे के पूर्ण अवधि तक पहुँचने के परिणाम को कैसे प्रभावित करती है ?
- प्रश्न- प्रसवपूर्ण जाँच के क्या लाभ हैं ?
- प्रश्न- विकास को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन हैं ?
- प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
- प्रश्न- शैशवावस्था में (0 से 2 वर्ष तक) शारीरिक विकास एवं क्रियात्मक विकास के मध्य अन्तर्सम्बन्धों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शैशवावस्था में बालक में सामाजिक विकास किस प्रकार होता है?
- प्रश्न- शिशु के भाषा विकास की विभिन्न अवस्थाओं की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास क्या है?
- प्रश्न- शैशवावस्था की विशेषताएँ क्या हैं?
- प्रश्न- शिशुकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है?
- प्रश्न- शैशवावस्था में सामाजिक विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।
- प्रश्न- सामाजिक विकास से आप क्या समझते है ?
- प्रश्न- सामाजिक विकास की अवस्थाएँ कौन-कौन सी हैं ?
- प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये ।
- प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं? समझाइये |
- प्रश्न- संवेगात्मक विकास को समझाइए ।
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- प्रश्न- बालकों के जीवन में नैतिक विकास का महत्व क्या है? समझाइये |
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- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास क्या है? बाल्यावस्था में संज्ञानात्मक विकास किस प्रकार होता है?
- प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
- प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें ।
- प्रश्न- बाल्यकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है?
- प्रश्न- सामाजिक विकास की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- संवेगात्मक विकास क्या है?
- प्रश्न- संवेग की क्या विशेषताएँ होती है?
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- प्रश्न- मध्यावस्था की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्या मध्य वयस्कता के दौरान मानसिक क्षमता कम हो जाती है ?
- प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था (50-60) वर्ष में मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक समायोजन पर संक्षेप में प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- उत्तर व्यस्कावस्था में कौन-कौन से परिवर्तन होते हैं तथा इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप कौन-कौन सी रुकावटें आती हैं?
- प्रश्न- पूर्व प्रौढ़ावस्था की प्रमुख विशेषताओं के बारे में लिखिये ।
- प्रश्न- वृद्धावस्था में नाड़ी सम्बन्धी योग्यता, मानसिक योग्यता एवं रुचियों के विभिन्न परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सेवा निवृत्ति के लिए योजना बनाना क्यों आवश्यक है ? इसके परिणामों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- वृद्धावस्था की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- वृद्धावस्था से क्या आशय है ? संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था (50-60 वर्ष) में हृदय रोग की समस्याओं का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- वृद्धावस्था में समायोजन को प्रभावित करने वाले कारकों को विस्तार से समझाइए ।
- प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था में स्वास्थ्य पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- स्वास्थ्य के सामान्य नियम बताइये ।
- प्रश्न- रक्तचाप' पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- आत्म अवधारणा की विशेषताएँ क्या हैं ?
- प्रश्न- उत्तर प्रौढ़ावस्था के कुशल-क्षेम पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- जीवन प्रत्याशा से आप क्या समझते हैं ?
- प्रश्न- अन्तरपीढ़ी सम्बन्ध क्या है?
- प्रश्न- वृद्धावस्था में रचनात्मक समायोजन पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अन्तर पीढी सम्बन्धों में तनाव के कारण बताओ।